ग़ज़ल
हुए हैं हद से भी बेहद सितम अब तो चले आओ
लो रख दी लब पे हमने भी क़सम अब तो चले आओ
मेरी आँखों मे तारों की सजी बारात है कब से
कमी है चाँद की केवल सनम अब तो चले आओ
भटकती रूह राहों पे निगाहें डाले फिरती है
न लेंगे हम दुबारा फ़िर जनम अब तो चले आओ
कहो कैसे चले आये थे शब को ख़्वाब में जानम
जगे बैठे हैं कब से दर पे हम अब तो चले आओ
मुझे आदत है अश्कों के नमक को चखते रहने की
वही है रोज़ के जैसा ये ग़म अब तो चले आओ
तसव्वुर में तेरे रातें सुलाना भूल जाती हैं
कहाँ हो तुम? हुई है आंख नम अब तो चले आओ
कसर है बस जरा बाकी मेरे खामोश होने में
नहीं फिर ये कहेंगे हम बलम अब तो चले आओ
Megha Rathi