नौगांव। छतरपुर जिले के नौगांव अनुविभाग थाना क्षेत्र के बिलहरी ग्राम ग्वालटोली में 300 साल से चली आ रही परंपरा हार साल एक सुअर की जान ले लेती है। यहां दिवाली के दूसरे दिन शाम को ग्रामीण एक स्थान पर जमा होते हैं और एक सुअर को बांधकर गायों के झुंड के सामने तब तक पटकते रहते हैं, जब तक उसकी मौत नहीं हो जाए।
इस बार भी दिवाली के दूसरे दिन सोमवार शाम इस गांव में ऐसा ही नजारा देखने को मिला। ग्वाले लोग अपनी-अपनी गायों को मोर के पंखो से बनी मालाए और रंग बिरंगी रस्सियों से बने जोत पहना कर एक मैदान में लेकर आ गए। मैदान में ही इनके देवता का चबूतरा बना हुआ है, जहां एक सुअर जो कि बरार समाज के लोगों से खरीद कर लाया जाता है। उसे बांधकर उन गायों के पास ले जाया जाता है जहां गायें उस सुअर को अपने सींगों पैरों से मारतीं हैं, उसे लहूलुहान और घायल करतीं हैं। इस बीच सुअर की यह दशा होती है कि वह अपना बचाव भी नहीं कर पाता अगर वह बचना भी चाहता है तो रस्सी से बंधे होने के कारण ये ग्वाले उसे गायों के पैरों के नीचे डालते हैं। इस दौरान वह लहूलुहान और घायल हो जाता है जिससे उसकी जान भी चली जाती है। तुलसीदास यादव और दिल्ले पाल का कहना है कि उनके यहां ये परंपरा इसलिए चली आ रही है कि उनके पूर्वज भी ऐसा ही करते थे। उनका कहना था कि गायों को जंगल में जानवरों से लडऩे के लिए ऐसा किया जाता है। अगर कोई जानवर हमला करे तो वे कैसे उसका मुकाबला करें।
परंपरा के नाम पर खूनी खेल, सुअर पर तब तक करते हैं अत्याचार, जब तक मर नहीं जाए