कविता- परिचय"
ख़ुद में रह कर वक़्त बिताना बेहतर है,
ख़ुद का परिचय ख़ुद से करवाना बेहतर है।
झूठ और दम्भ के भंवर में उलझी दुनिया से,
खुद को ही किनारा बनाना बेहतर है।
दुनिया की इस भेड़ चाल का हिस्सा बनने से अर्थ नही,
अपने साथी खुद बन जाना बेहतर है।
तेरी - मेरी, इसकी - उसकी, ये किस्सा बेमानी है,
ख़ुद से ही खुद को मिलाना बेहतर है।
दुनिया के निष्ठुर नातों से तोड़ कर रिश्ते बेमानी,
खुद में ही ख़ुद को तलाशना बेहतर है।
खामोशी में कुछ पल अपने अंतर्मन के संग बैठ कर
ख़ुद को ख़ुद की बात सुनाना बेहतर है।
माया रूपी दुनिया की इस भ्रमिक रोशनी में खोकर,
अपने ही अंतर्मन में एक दीप जलाना बेहतर है।
प्रियंका श्रीवास्तव, भोपाल