मजदूरों का पलायन एक बड़ा खतरा बनकर सामने आया 


कोरोना वायरस से लड़ाई के क्रम में देश को एक नई समस्या से जूझना पड़ रहा है। वह है राजधानी समेत तमाम छोटे-बड़े शहरों से मजदूरों का पलायन। खासकर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से बड़ी संख्या में कारखाना मजदूर और दिहाड़ी कामगार बिहार और उत्तर प्रदेश में स्थित अपने गांवों की ओर पैदल ही निकल पड़े हैं। इस अप्रत्याशित स्थिति का देश के किसी भी जिम्मेदार पदाधिकारी को रत्ती भर अंदाजा नहीं था। लॉकडाउन की स्थिति में झुंड बनाकर चल रहे इन मेहनतकशों की तस्वीरों ने देश के सामने कुछ गहरे सामाजिक-आर्थिक सवाल खड़े कर दिए हैं।


प्रधानमंत्री द्वारा 21 दिनों तक घर से बाहर आवाजाही पर रोक की घोषणा किए जाने के साथ ही ये मजदूर अपने ठिकानों से निकल पड़े। उनका यह हाल देखकर चौकन्नी हुई सरकार ने एक के बाद एक घोषणाओं की झड़ी लगा दी। पहले कहा गया कि उन्हें बेहद कम दरों पर राशन मिलेगा, सीधे उनके खाते में पैसे भेजे जाएंगे। फिर सवाल उठा कि जो रास्ते में हैं, वे खाएंगे क्या। फिर जिला प्रशासन, रेलवे, पुलिस और गैर सरकारी संगठनों ने जगह-जगह उनके खाने की व्यवस्था शुरू की। कुछ बस सेवाएं भी शुरू की गईं ताकि वे अपने गांव जा सकें। लेकिन इसके बावजूद मामला सुलझ नहीं रहा। बात सिर्फ इनके रहने-खाने और कहीं जाने की नहीं है। उनमें से कितने लोग संक्रमण के शिकार हैं, कोई नहीं जानता।

हजार में एक केस भी अगर ऐसा निकल गया तो बीमारी गांव-गांव में फैल जाएगी। अभी तक माना जा रहा था कि कोरोना का प्रकोप शहरों तक सीमित है, लेकिन मजदूरों के पलायन से इसका दायरा बहुत बढ़ जाने का खतरा है। इसी डर से लोगबाग बाहर से आए अपने ही लोगों को गांव में घुसने नहीं दे रहे हैं। इसे लेकर कई जगह झगड़े हो चुके हैं। राज्य सरकारों की ओर से अपील की जा रही है कि वे जहां हैं, वहीं रुक जाएं पर वे नहीं रुक रहे। मान लीजिए, रुक भी गए तो क्या उन्हें ठहराने का पर्याप्त इंतजाम है?


केंद्र सरकार का स्पष्ट आदेश ऐसे हर व्यक्ति को फिलहाल चौदह दिन के क्वारंटीन में रखने का है। इस दौरान न सिर्फ उनके ठहरने का बल्कि सबको एक-दूसरे से दूर रखने का भी इंतजाम करना होगा। उनके खानपान और किसी बीमारी की स्थिति में दवा की व्यवस्था करनी होगी। साथ ही कोरोना के लिए उनका टेस्ट भी करना होगा। किसी में वायरस पाया गया तो उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना होगा और उस कैंप में मौजूद हर व्यक्ति को संक्रामक बीमारी का संभावित मरीज मानकर उस पर खास नजर रखनी होगी।


अभी जैसे दबाव का सामना सरकारी मशीनरी कर रही है, उसके बीच क्या यह सब संभव है? सड़क पर निकले इन लोगों में से ज्यादातर यूपी-बिहार के हैं। पुलिस और चिकित्साकर्मियों की संख्या इन दोनों राज्यों में हमेशा ही जरूरत से कम मानी जाती रही है। ऐसे में दोनों राज्यों का पूरा तंत्र इन्हीं की देखरेख में जुटा रहेगा तो कोरोना से निपटने के राष्ट्रव्यापी कार्यभार का क्या होगा?


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