न्यूयॉर्क टाइम्स से / लॉकडाउन में माता-पिता बनने की चाहत लेकर भारत आए अमेरिकी कपल की कहानी, लंबी जद्दोजहद के बाद वापस घर पहुंचे, अब बेटी के लिए इंडियन फूड तलाश रहे
- दोनों ने तमिलनाडु के मदुरई स्थित अनाथ आश्रम से 2 साल की बच्ची को गोद लिया
- अमेरिकी कपल दिल्ली एयरपोर्ट पर एक कागज की गलती के कारण अटक गए थे
मारिया अबि हबीब. 41 साल के सेठ मोजियर और उनकी 42 साल की पत्नी मेग अमेरिका के रहने वाले हैं। दोनों पांच साल से बच्चे के लिए कोशिश कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने आईवीएफ तकनीक का भी सहारा लिया। लगातार असफल होने के बाद उन्होंने 2018 में चाइल्ड एडॉप्शन का रास्ता चुना। फिर कपल ने भारत में बच्चा गोद लेने का विचार किया। यहां गोद लेने की प्रक्रिया बाकी जगहों की तुलना में थोड़ी आसान है।
सेठ और मेग मार्च में तमिलनाडु पहुंचे थे। इसके बाद दोनों मदुरई शहर के अनाथ आश्रम से एक बच्ची सेल्वी को गोद लिया। लेकिन इसी बीच कोरोनावायरस के कारण सरकार ने लॉकडाउन घोषित कर दिया।इससे यह परिवार दिल्ली में अटक गया। हालांकि इस तरह फंस जाना अमेरिकन डिप्लोमेट सेठ के लिए नया नहीं था। अपने काम के दौरान वे कई बार ऐसे हालातों से गुजर चुके थे। सेठ ने आखिरी समय में अमेरिकी दूतावास से डॉक्यूमेंट्स फाइनल करवाया और किसी तरह सेल्वी को लेकर अमेरिका पहुंच सके।
फिलहाल मोजियर बेथेस्डा, मेरिलैंड में हैं। यहां गवर्नर ने लॉकडाउन बढ़ाने के आदेश दिए हैं। परिवार इन हालातों के चलते बेटी को परिवार और दोस्तों से नहीं मिला पाया है। सेल्वी को अमेरिकन खाने में भी परेशानी हो रही है। इस वजह से मेग ऑनलाइन इंडियन रेसिपी तलाश रही हैं।
लॉकडाउन की खबर से परिवार बनने की उम्मीद टूटने लगी थी
बीते दिसंबर में सेठ और मेग ने पहली बार सेल्वी से वीडियो कॉल पर बात की थी। इसके तीन महीने बाद राजधानी दिल्ली में 2 मार्च को कोरोनावायरस का पहला मामला आया। कपल को इसके एक दिन पहले ही एडॉप्शन की अनुमति मिली थी। सेठ और मेग कहते हैं कि उनके भारत पहुंचने के महज 20 घंटे बाद ही सरकार ने बॉर्डर सील कर दी। उपयोग नहीं किए गए वीजा कैंसिल और विदेशियों के यहां आने पर रोक लगा दी गई। खबरें आने लगीं कि सरकार सभी अंतरराष्ट्रीय यात्राओं को रद्द करने पर विचार कर रही है।'
ऐसे में इस कपल के पास एक ही रास्ता था कि बेटी से मिलें और बचे हुए समय में यहां से निकल जाएं। हालांकि बॉन्ड इतनी जल्दी नहीं बनता है, लेकिन इस काम में भी उन्हें तेजी लानी थी। मेग जमीन पर बैठकर सेल्वी की हरकतें देखने लगीं। उसे चिंता थी कि क्या वो सेल्वी के साथ उसकी केयरटेकर की बॉन्ड बना पाएंगी।
बेटी को गोद लेने से पहले आश्रम में एक समारोह भी हुआ
मेग कहती हैं कि मैं जब केयरटेकर से मिली मुझे शुक्रिया महसूस हुआ, हमने सेल्वी की जिंदगी के दो साल मिस कर दिए। काश, हम शुरुआत से ही उसके माता पिता होते, लेकिन हम नहीं थे। सेल्वी अच्छे हाथों में रही। अगले दिन हम बेटी को घर ले जा सकते थे। इससे पहले आश्रम में एक समारोह हुआ। उस वक्त मुझे सेल्वी की केयरटेकर के लिए बहुत हमदर्दी हुई। उसने शुरुआती दो सालों तक बच्ची की देखभाल की। रोते हुए मैंने केयरटेकर को शुक्रिया बोला और हमेशा उसे सेल्वी के जीवन का हिस्सा बनाने का वादा किया।
एक जरूरी कागज की वजह से भारत में अटके
मदुरई से निकलकर परिवार 18 मार्च को दिल्ली पहुंचा। अगले दिन घोषणा हुई कि देश के बाहर आने-जाने वाली सभी फ्लाईट्स तीन दिन में कैंसिल हो सकती हैं। ऐसे में कपल के पास के जरूरी कागजों का पूरा करने के लिए दो दिन का वक्त था।
यूएस इमिग्रेशन पेपरवर्क में आमतौर पर एक हफ्ते का वक्त लगता है, लेकिन दोनों देश के अधिकारियों ने इसे पूरा करने में तेजी दिखाई। एयरपोर्ट बंद होने के कुछ घंटों पहले ही मोजियर कस्टम्स से गुजरे। इस दौरान वे अपना एक जरूरी कागज भूल गए थे। इस कागज में सेल्वी को देश से बाहर ले जाए जाने की अनुमति दी गई थी।
मिशनरीज को ऑफर की गई फ्लाईट्स के कारण निकल सके
भारत में सरकार लॉकडाउन की घोषणा कर चुकी थी। करीब 130 करोड़ की आबादी घर में कैद हो गई थी। ऐसे में मोजियर एक लगभग खाली होटल में रुके। यहां मौजूद करीब 500 कमरों में से केवल 10 रूम भरे हुए थे। उन्होंने 9 दिन होटल में गुजारे। यूएस एंबेसी के पास हजारों अमेरिकी वापस जाने के लिए रिक्वेस्ट कर चुके थे। आखिरकार परिवार को एक ईमेल मिला, जिसमें बताया गया था कि लैटर डे सेंट्स अपने मिशनरीज को वापस लाने के लिए फ्लाइट भेज रहा है। उन्होंने दूतावास को यह सीटें दीं, जहां से यह जगह मोजियर परिवार को मिलीं। फिर दोनों सेल्वी के साथ अमेरिका पहुंचे।