राजस्थान का साहसी मुकेश / हिरण को बचाने के लिए हथियारों से लैस 4 शिकारियों से भिड़ गया, एक शिकारी की बंदूक छीन ली
- राजस्थान के जोधपुर की घटना, 16 साल के मुकेश के इस साहसिक कदम की सोशल मीडिया पर तारीफ हो रही
- 11वीं में पढ़ने वाले मुकेश ने दैनिक भास्कर को बताया- अफसोस इस बात का है कि मैं हिरण को बचा नहीं पाया
जोधपुर. यहां के बालेसर में 16 साल का मुकेश मांजू हिरण को बचाने के लिए चार शिकारियों से भिड़ गया। अपनी जान जोखिम में डालने के बावजूद अकेला मुकेश हिरण को तो नहीं बचा पाया, लेकिन शिकारियों की एक बंदूक छीनने में सफल रहा। मुकेश के इस साहसिक कदम की अब सोशल मीडिया पर लोग तारीफ कर रहे हैं। कुछ लोगों ने उसे रियल हीरो बताया। मारवाड़ में वन्यजीवों व पेड़ों को बचाने के लिए विश्नोई समुदाय का समृद्ध इतिहास रहा है। इस कड़ी में मुकेश का नाम भी जुड़ गया। दैनिक भास्कर ने घटना को लेकर मुकेश से बात की। पढ़िए, पूरी कहानी उसकी जुबानी..।
'गोली चलने की आवाज सुनाई दी तो शक हुआ'
मुकेश ने कहा, रविवार रात 8.30 को मैं बालेसर के भालू अनोपगढ़ में अपने स्कूल के पास अपने दोस्त पुखराज के साथ खड़ा था। तभी मुझे गोली चलने की आवाज सुनाई दी। मुझे कुछ शक हुआ। मैं तुरंत अपने दोस्त की बाइक होकर हम दोनों गोली की आवाज की दिशा में चल पड़े। गांव के बाहरी छोर पर चार लोग एक हिरण के साथ नजर आए। पीछा करने पर चारों शिकारी एक रेतीले टीले पर चढ़ गए। इस पर मैं तेजी से चलती बाइक से ही उतरा और उनके पीछे भागा। एक शिकारी को मैंने पकड़ लिया। हम दोनों एक दूसरे के लड़ने लगे। हमारे गुथमगुत्था होते ही दो शिकारी हिरण लेकर भाग निकले। तभी एक और शिकारी पीछे से आया और मुझे धक्का दिया। मैं जमीन पर गिर पड़ा। इस दौरान शिकारी का साथी मेरी पकड़ से छूट गया। मैंने उस शिकारी से उसकी बंदूक छीन ली। बंदूक वहीं छोड़ सभी शिकारी भाग निकले।
'लॉकडाउन के दौरान हिरण के शिकार की दूसरी घटना'
'फिर मैंने और मेरे दोस्त ने हिरण के शरीर से बह रहे खून के निशान के आधार पर शिकारियों का पीछा किया। इस दौरान अन्य लोगों को भी बुला लिया। बाद में पुलिस व वन विभाग की टीम पहुंची तब तक शिकारी वहां से गायब हो चुके थे। लॉकडाउन के दौरान हिरण के शिकार की यह दूसरी घटना है। पिछले माह भी ऐसा ही एक मामला हुआ था। तभी भी मैंने अपने दोस्तों के साथ हिरण के शिकारियों का पीछा किया था। इस दौरान शिकारियों ने मेरे दोस्तों पर गोलियां चलाई थी, लेकिन हम बच गए और शिकारी हिरण लेकर भाग निकले।'
'अफसोस इस बात का है कि हिरण को नहीं बचा पाया'
मुकेश कहते हैं, ' गोली की आवाज सुनते ही हमें लग गया था कि कोई शिकार हुआ है। मेरे गांव के आसपास बड़ी संख्या में हिरण हैं। ऐसे में हम बगैर एक पल भी गवाएं गोली चलने की दिशा में दौड़ कर पहुंच गए। उस समय मेरे दिमाग में सिर्फ हिरण की जान बचाने को लेकर ही जद्दोजहद चल रही थी, लेकिन अफसोस है कि मैं उसे बचा नहीं पाया।'
सोशल मीडिया पर छा गया मुकेश
निहत्थे ही शिकारियों से भिड़ जाने को लेकर मुकेश और उसका दोस्त सोशल मीडिया पर छा गए हैं। सभी लोग मुकेश को हीरो करार दे रहे है। आईएफएस प्रवीण कासवान ने सबसे पहले ट्वीट कर उसकी बहादुरी की लोगों को जानकारी दी। इसके बाद कुछ लोगों ने लिखा कि विश्नोई समुदाय अपनी जान पर खेल कर भी वन्यजीवों की रक्षा करने को संकल्पित है। वहीं कुछ लोगों ने इस मामले में पुलिस से त्वरित कार्यवाही कर शिकारियों का गिरफ्तार करने की मांग की है।
विश्नोई समुदाय की परम्परा
233 वर्ष पूर्व जोधपुर के निकट पेड़ों को बचाने के लिए विश्नोई समुदाय के 363 लोगों ने अमृता देवी के नेतृत्व में अपनी जान कुर्बान कर दी थी। यह समुदाय हमेशा से वन्यजीवों की रक्षा करता आया है। समाज के कई लोग हिरणों को बचाने के प्रयास में शिकारियों की गोली के शिकार हो चुके है। विश्नोई बाहुल्य इलाकों में हिरणों की संख्या सबसे अधिक पाई जाती है।