रामायण / पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति रखना चाहिए समर्पण का भाव, तभी बना रहता है प्रेम

रामायण / पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति रखना चाहिए समर्पण का भाव, तभी बना रहता है प्रेम




  • श्रीराम के साथ सीता भी जाना चाहती थीं वनवास, सीता ने वनवास जाने के लिए सभी को मना लिया


पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहे, इसके लिए जरूरी है कि दोनों एक-दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखे। अपने सुख से ज्यादा जीवन साथी के सुख को महत्व देने पर वैवाहिक जीवन में प्रेम बना रहता है। रामायण में श्रीराम ने सीता को वचन दिया था कि वे जीवनभर उसी के प्रति निष्ठावान रहेंगे। उनके जीवन में कभी कोई दूसरी स्त्री नहीं आएगी। सीता ने भी वचन दिया था कि वह हर सुख-दुख में साथ रहेंगी।


श्रीराम के साथ वनवास जाकर सीता ने निभाया अपना वचन


श्रीरामजी को वनवास जाना था, उस समय वे चाहते थे कि सीता मां कौशल्या के पास ही रहे, लेकिन सीता वनवास जाना चाहती थीं। श्रीराम की माता कौशल्या भी चाहती थीं सीता अयोध्या में ही रहे। श्रीराम ने सीता को समझाया कि वन में कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ेगा। वहां भयंकर राक्षस होंगे, सैकड़ों सांप होंगे, वन की धूप, ठंड और बारिश भी भयानक होती है, समय-समय पर मनुष्यों को खाने वाले जानवरों का सामना करना पड़ेगा, तरह-तरह की विपत्तियां आएंगी। इन सभी परेशानियों का सामना करना किसी सुकोमल राजकुमारी के लिए बहुत ही मुश्किल होगा। इस प्रकार समझाने के बाद भी सीता नहीं मानीं और वनवास में साथ जाने के लिए श्रीराम और माता कौशल्या को मना लिया।


सीता ने श्रीराम के प्रति समर्पण का भाव दर्शाया और अपने स्वामी के साथ वे भी वनवास गईं। समर्पण की इसी भावना की वजह से श्रीराम और सीता का वैवाहिक जीवन दिव्य माना गया है। भगवान के अवतारों की ये घटनाएं हमें बड़े-बड़े संदेश देती हैं।



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