सीमा विवाद / चीन ने भारत को सैनिकों की बैठक का न्योता नहीं दिया, फिर 9 दिन में 2 बार झड़प हुई; लिपुलेख पर नेपाल के ऐतराज के पीछे भी चीन हो सकता है

सीमा विवाद / चीन ने भारत को सैनिकों की बैठक का न्योता नहीं दिया, फिर 9 दिन में 2 बार झड़प हुई; लिपुलेख पर नेपाल के ऐतराज के पीछे भी चीन हो सकता है



 




  • पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील पर 5 मई को भारत और चीन के 200 सैनिकों के बीच टकराव हुआ था

  • उत्तरी सिक्किम के नाकू ला सेक्टर में भी 9 मई को दोनों देशों के 150 सैनिकों के बीच झड़प हुई थी

  • कैलाश मानसरोवर के लिए भारत ने लिपुलेख का रास्ता शुरू किया, नेपाल ने कहा- यह हमारे इलाके से गुजर रहा


नई दिल्ली. पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील और सिक्किम सेक्टर की नाकू ला सीमा। दोनों जगहों के बीच की दूरी एक हजार किलोमीटर से भी ज्यादा है। दोनों ही इलाके भारत-चीन के बीच की 3488 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल में आते हैं और ताजा सीमा विवाद की वजह से सुर्खियों में भी हैं। 


हालांकि, इस बार भारत-चीन के सैनिकों के बीच का मामला विवाद से आगे निकलकर आमने-सामने के टकराव पर पहुंच चुका है। पैंगोंग झील और नाकू ला में इसी महीने की शुरुआत में भारत-चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई। सैनिकों ने एकदूसरे को घूंसे मारे। पथराव भी हुआ। इसमें 10 सैनिक घायल हाे गए।


सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि मामला मारपीट और पथराव तक जा पहुंचा। हमारी पड़ताल बताती है कि यह पिछले कुछ दिनों से चले आ रहे घटनाक्रमों का नतीजा हो सकता है।


...तो सबसे पहले जानते हैं कि ये झड़प कहां, कब और कैसे हुई?


1) तारीख- 5 मई, जगह- पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील
उस दिन शाम के वक्त इस झील के उत्तरी किनारे पर फिंगर-5 इलाके में भारत-चीन के करीब 200 सैनिक आमने-सामने हो गए। भारत ने चीन के सैनिकों की मौजूदगी पर ऐतराज जताया। पूरी रात टकराव के हालात बने रहे। अगले दिन तड़के दोनों तरफ के सैनिकों के बीच झड़प हो गई। बाद में दोनों तरफ के आला अफसरों के बीच बातचीत के बाद मामला शांत हुआ।


पैंगोंग झील के दो-तिहाई हिस्से पर चीन का कंट्रोल
पैंगोंग कोई छोटी झील नहीं है। 14 हजार 270 फीट की ऊंचाई पर मौजूद इस झील का इलाका लद्दाख से तिब्बत तक फैला है। यह 134 किमी लंबी है। कहीं-कहीं 5 किमी तक चौड़ी भी है। दोनों देशों की सेना यहां नावों से पेट्रोलिंग करती है। दरअसल, इस झील के बीच में से भारत-चीन की लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल गुजरती है। इसके दो-तिहाई हिस्से पर चीन का कंट्रोल है। इसी वजह से यहां अक्सर तनाव के हालात पैदा होते हैं।


2) तारीख- संभवत: 9 मई, जगह- उत्तरी सिक्किम में 16 हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद नाकू ला सेक्टर
यहां भारत-चीन के 150 सैनिक आमने-सामने हो गए थे। आधिकारिक तौर पर इसकी तारीख सामने नहीं आई। हालांकि, द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां झड़प 9 मई को ही हुई। गश्त के दौरान आमने-सामने हुए सैनिकों ने एक-दूसरे पर मुक्कों से वार किए। इस झड़प में 10 सैनिक घायल हुए। यहां भी बाद में अफसरों ने दखल दिया। फिर झड़प रुकी। 


नाकू ला में पहले कभी बड़ा टकराव नहीं हुआ था
नाकू ला सेक्टर वह इलाका है, जहां हाल के बरसों में भारत-चीन के सैनिकों के बीच कोई बड़ा टकराव नहीं हुआ था। यह इलाका मुगुथंग के नजदीक है, जो तिब्बती शरणार्थियों के लिए जाना जाता है। यहीं पर उत्तरी सिक्किम की आखिरी सीमा चौकी है और उसके बाद चीन का इलाका शुरू हो जाता है।


3) तारीख- संभवत: 9 मई, जगह- लद्दाख
जिस दिन उत्तरी सिक्किम में भारत-चीन के सैनिकों में झड़प हो रही थी, उसी दिन चीन ने लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर अपने हेलिकॉप्टर भेजे थे। चीन के हेलिकॉप्टरों ने सीमा तो पार नहीं की, लेकिन जवाब में भारत ने लेह एयरबेस से अपने सुखोई 30 एमकेआई फाइटर प्लेन का बेड़ा और बाकी लड़ाकू विमान रवाना कर दिए। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो हाल के बरसों में ऐसा पहली बार हुआ जब चीन की ऐसी हरकत के जवाब में भारत ने अपने लड़ाकू विमान सीमा के पास भेजे।


सब कुछ ठीक नहीं: पहली झड़प से ठीक 5 दिन पहले सैनिकों की मुलाकात के लिए चीन ने न्योता नहीं भेजा
दिलचस्प बात यह है कि 5 मई को लद्दाख की पैंगोंग झील पर सैनिकों के बीच झड़प होने से ठीक 5 दिन पहले भारत-चीन के बीच बॉर्डर पर्सनल मीटिंग होनी थी। द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 1 मई को चीन लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल में 5 सीमा चौकियों पर भारतीय सैनिकों की मेजबानी करता है। दोनों देशों की सेनाओं के बीच इसे आपसी भरोसा बढ़ाने वाले कदम के तौर पर देखा जाता है। हालांकि, इस बार चीन ने भारत को इस बैठक का न्योता ही नहीं दिया।


क्या चीन इन दो वजहों से भारत से चिढ़ गया?
पहली वजह - कैलाश मानसरोवर के लिए लिपुलेख रास्ते की शुरुआत, नेपाल को ऐतराज

कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए भारत ने बीते शुक्रवार लिपुलेख-धाराचूला रास्ते की शुरुआत की थी। यह रास्ता उत्तराखंड में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर है। इससे तीर्थ यात्रियों, स्थानीय लोगों और कारोबारियों को सहूलियत मिलेगी। हालांकि, नेपाल को इस पर आपत्ति है। 


नेपाल का कहना है कि रास्ता महाकाली नदी के जिस इलाके से गुजर रहा है, वह हमारा है। माना जा रहा है कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने चीन के दबाव में आकर यह आपत्ति उठाई है। जबकि भारत-नेपाल के बीच 97% सीमा इलाकों पर कोई विवाद नहीं है।


दूसरी वजह- भारत ने एलएसी तक पहुंचने के लिए अरुणाचल में पुल बनाया
बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने बीते अप्रैल में अरुणाचल प्रदेश की सुबनसिरी नदी पर महज 27 दिन में डेपोरिजो पुल बनाकर तैयार कर लिया था। यह पुल भारत-चीन सीमा पर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) तक 40 टन वजनी गाड़ियों को पहुंचाने में खासा मददगार होगा। 


पुल की लंबाई 430 फीट है। इसका ज्यादातर काम लॉकडाउन के दौरान हुआ। चीन को अरुणाचल में भारत की गतिविधियों पर लंबे समय से आपत्ति रही है। पिछले साल नवंबर में जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अरुणाचल का दौरा किया था, तब भी चीन ने आपत्ति जताई थी।



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